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"पेड़ / शरद बिलौरे" के अवतरणों में अंतर
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15:10, 5 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
आज जब मैं
अपने टूटने के क्षणों में
पेड़ की टूटती डालियों को महसूस करता हूँ
तो बातें
ज़्यादा साफ़ और तर्कसंगत लगने लगती हैं।
पेड़ जो धरती और आकाश से
बराबर-बराबर अनुपात में जुड़ा है
अपनी पत्तियों में आकाश समेटे
जड़ तक पहुँचते-पहुँचते
धरती हो जाता है।
हवा, धूप और धूल का
एक जैसा स्वागत करता
चींटियों और चिड़ियों के रिश्ते में बंधा
अपने अस्तित्व के लिए
धरती में उबलते लावे के नज़दीक
खड़ा पेड़।
तुम कभी इतिहास के भीतर जाओ
और
किसी आदमी के पेड़ होने की कथा पढ़ो
तो समझना
वह मेरे वंश की उत्पत्ति का युग था।