भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साँप / शरद बिलौरे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद बिलौरे |संग्रह=तय तो यही हुआ था / शरद बिलौरे }...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:57, 7 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
कल जिसे आँगन में मार दिया गया थ
साँप
रात सपने में आया था
अपना ज़हर वाला दाँत माँगने
कह रहा था
दूसरी दुनिया वालों ने
मुझे साँप मानने से इन्कार कर दिया है
वहाँ मेरे साथ न्याय नहीं हो रहा है
मेरा ज़हर वाला दाँत मुझे लौटा दो
मैं सुबह माँ से पूछता हूँ
साँप के दाँत के बारे में
माँ कहती है
बेटा
इतने छोटे बच्चे के दाँत नहीं होते
अच्छा ही हुआ
जो मैं
अपना दाँत माँगने
किसी के सपने में नहीं गया।