भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मकड़जाल / प्रेमरंजन अनिमेष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमरंजन अनिमेष |संग्रह=मिट्टी के फल / प्रेमरं...)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:00, 8 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

माँ देखो कितना अच्छा तमाशा !
तुम देख लो
मैं घर जो
देख रही हूँ
कह देती वह

सुनो तो कैसा प्यारा
गीत आ रहा है...
मैं तो सुन रही हूँ कोई और ही संगीत
सिर नहीं उठाती वह

माँ पहनो न नया
हठ करते हम
और वह प्रार्थना...
पहनो तुम लोग
तुम्हीं से मेरा जो कुछ है नया

अच्छा चलो हमारे संग घूमने
बाहर कैसी सजी हैं मूर्तियाँ
कहाँ जाऊँगी भला
मैं तो आप हो गई हूँ मूरत
होंठ हिलते उसके
और जम जाते हमारे पाँव

ग़ौर से देखता हूँ उसे फिर से

क्या यह
वही लड़की है
जिसे मेले में देखकर
पसन्द किया था पिता ने ?