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"बेस्वाद / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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10:04, 11 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
पत्थर और ग़ालियाँ खाने के बाद
उसको कहते नहीं सुना कि
समाज उसकी बरदाश्त के बाहर है
एक बेस्वाद सच
अपने रास्ते चला जा रहा है
हम ही उसमें स्वाद लेने लगते हैं
वह हमारा ही फेंका हुआ पत्थर
हमें लौटा देता है
हमारा ही कोई शब्द
हम उसे कड़वा-सच कह कर झुठला देते हैं
एक दिन हम ही उसे मार डालेंगे
इस आरोप मे कि-
उसने जीना हराम कर दिया था