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"प्रिया-1 / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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00:08, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
शब्द सुन्दर होते हैं
उन पर कोई भी रीझ सकता है
कभी-कभी जीवन में
धोखे की भोर होती है
हम चल देते हैं
नदी किनारे
आधी रात
सेज पर छोड़कर
अपनी प्रिया को
उसे अकेला पाकर
देवता कलंकित करते हैं
अपना काला मुँह करके दमकते हैं
शब्द ऎसे भी हमसे बिछुड़ जाते हैं
हमारे शाप से शिला बन जाते हैं
फिर युगों तक हमारी प्रतीक्षा करते हैं...