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"प्रिया-13 / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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शब्द अपने रूप में डूबे हैं
ठहरी हुई है
एक ही मुस्कान
आँखों की कोर पर ठहरा है
एक ही आँसू
कितने कंकर फेंके
डोल गए
सूर्य-चन्द्र-तारे सब
वन-पर्वत
पानी हिला-हिला कर हार गए
मिटती नहीं महाछवि
फिर वही
मछली तैरने लगती है
शान्त
नीले जल में
अपना रूप निहार रही है प्रिया