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"झील पर पंछी:दो / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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धात्री नद-झील के तट पर | धात्री नद-झील के तट पर | ||
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वे यायावर | वे यायावर | ||
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खड़े हैं पंक्तिबद्घ | खड़े हैं पंक्तिबद्घ | ||
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इनका ड्रिलमास्टर | इनका ड्रिलमास्टर | ||
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बैठा सात आसमानों के ऊपर | बैठा सात आसमानों के ऊपर | ||
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अदृश्य | अदृश्य | ||
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फिर भी कर रहे कवायद | फिर भी कर रहे कवायद | ||
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दिखा रहे अपने खेल-करतब | दिखा रहे अपने खेल-करतब | ||
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साइबेरिया से आये | साइबेरिया से आये | ||
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बड़े-बड़े डैनों वाले मेहमान | बड़े-बड़े डैनों वाले मेहमान | ||
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उड़ रहे पानी की सतह पर | उड़ रहे पानी की सतह पर | ||
− | + | मत्स्य-घात में तल्लीन | |
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पनकव्वे | पनकव्वे | ||
− | + | बैठे दरख़्तों पर | |
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कर रहे द्वीप के | कर रहे द्वीप के | ||
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एकाकीपन को आबाद | एकाकीपन को आबाद | ||
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नहीं रहते यायावर | नहीं रहते यायावर | ||
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अपने बनाये नीड़-बसेरों में | अपने बनाये नीड़-बसेरों में | ||
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खुले आसमान के नीचे | खुले आसमान के नीचे | ||
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शिकारियों से सुरक्षित | शिकारियों से सुरक्षित | ||
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कुछ देख रहे | कुछ देख रहे | ||
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सन्ध्या के सूरज को | सन्ध्या के सूरज को | ||
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पश्चिम के क्षितिज पर | पश्चिम के क्षितिज पर | ||
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जब होती रंगों की बौछार | जब होती रंगों की बौछार | ||
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आकाश के फलक पर | आकाश के फलक पर | ||
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अपनी-अपनी बोली में | अपनी-अपनी बोली में | ||
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कुछ टोले पखेरुओं के | कुछ टोले पखेरुओं के | ||
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गाते समस्वरित गान | गाते समस्वरित गान | ||
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एक साथ | एक साथ | ||
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दूर-दूर हलके अन्धेरे में धुँधलातीं पर्वतमालाएँ | दूर-दूर हलके अन्धेरे में धुँधलातीं पर्वतमालाएँ | ||
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पक्षी नाच रहे | पक्षी नाच रहे | ||
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कर रहे धमाल | कर रहे धमाल | ||
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आँख और कान | आँख और कान | ||
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हो रहे मंत्रमुग्ध। | हो रहे मंत्रमुग्ध। | ||
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02:50, 12 जनवरी 2009 का अवतरण
(प्रवास)
धात्री नद-झील के तट पर
वे यायावर
खड़े हैं पंक्तिबद्घ
इनका ड्रिलमास्टर
बैठा सात आसमानों के ऊपर
अदृश्य
फिर भी कर रहे कवायद
दिखा रहे अपने खेल-करतब
साइबेरिया से आये
बड़े-बड़े डैनों वाले मेहमान
उड़ रहे पानी की सतह पर
मत्स्य-घात में तल्लीन
पनकव्वे
बैठे दरख़्तों पर
कर रहे द्वीप के
एकाकीपन को आबाद
नहीं रहते यायावर
अपने बनाये नीड़-बसेरों में
वे ख़ुश हैं
खुले आसमान के नीचे
शिकारियों से सुरक्षित
कुछ देख रहे
सन्ध्या के सूरज को
पश्चिम के क्षितिज पर
जब होती रंगों की बौछार
आकाश के फलक पर
अपनी-अपनी बोली में
कुछ टोले पखेरुओं के
गाते समस्वरित गान
एक साथ
दूर-दूर हलके अन्धेरे में धुँधलातीं पर्वतमालाएँ
पक्षी नाच रहे
कर रहे धमाल
आँख और कान
हो रहे मंत्रमुग्ध।