भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मूँछें-4 / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |संग्रह=खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं / ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:16, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
मैं अपनी मूँछ का बाल लेकर
उनके पास गया
वे कभी मेरी मूँछ देखकर ख़ुश होते थे
मुझे स्वयंवर में बुलाते थे
देखो मेरे भाग
वे सोना
मैं सुहाग
खाली हाथ लौट रहा हूँ
द्वार से
डालर की क़ीमत बढ़ गई है
मूँछें उनकी भी हैं
वे अपनी मूँछों पर हाथ फेर दें
तो मूछों की क़ीमत गिर जाती है
बारात लौट जाती है