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20:25, 13 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

प्रेम में
चट्टानों पर उग आती है घास

किसी टहनी का
पेड़ से कटकर
दूर मिट्टी में फिर से
फलना-फूलना
प्रेम ही तो है
प्रेम में पलटती हैं ऋतुएँ

प्रेम में उत्पन्न संतान को
अपनाने से
करता है इन्कार
कायर पिता
बेबस माँ फेंक देती है
नदी किनारे
जहाँ नोच खाते हैं उसे
आवारा कुत्ते।