भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इमारतें / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=तुलसी रमण | + | |रचनाकार=तुलसी रमण |
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण |
}} | }} | ||
− | |||
<Poem> | <Poem> | ||
माना ऊँची | माना ऊँची |
04:30, 14 जनवरी 2009 का अवतरण
माना ऊँची
बहुत ऊँची
बन रही हैं इमारतें
आसमान को छूती हुई
लेकिन हरेक की
नींव रखने के साथ ही
मिट्टी में धँसी हुईं
आस-पास उगी हैं
अनेक झुग्गियाँ
जिनके बिना
कुछ भी नहीं
ये इमारतें।