भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गड्ढे में गाँव / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |संग्रह=खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं / ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:05, 14 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
छिंदवाड़ा जिले के एक ग्राम पाताल कोट की स्मृति
अगर पहले से गड्ढा था,
गया क्यों गाँव वहाँ बसने?
बसा था पहले से यदि गाँव,
गई क्यों ज़मीं वहाँ धँसने?
धँसे होंगे पन्द्रह पच्चीस,
हुए क्यों बढ़कर वही पचास।
छोड़ देते गड्ढे का मोह,
लगाते और कहीं पर आस।
बिताए वहीं सैंकड़ों वर्ष।
नहीं जाना उनने उत्कर्ष।
कुएँ में कछुए से वे दिन।
विचारे हुए जगत से हीन।
न जाने यह सब कैसे हुआ !
ज़िन्दगी गड्ढे में गिरकर,
खोद लेती है अपना कुआँ।
द्वन्द्व का कोई ठौर न ठाँव।
तर्क के लम्बे-लम्बे पाँव।
सतह पर सूरज उगा है,
घिरा है अंधियारे में गाँव।