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"तुम नदी / सुधीर सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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सागर हूँ मैं
आपाद मस्तक खारा ।
तुम नदी ।
मुझे एक बूँद दो
कि मैं प्यास बुझा सकूँ
--मैं युग-युग से प्यासा ।