"झरा दूध अभी / लीलाधर मंडलोई" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह= }} कोठा है प्राचीन काठ के संदूक म...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई | |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=क्षमायाचना / लीलाधर मंडलोई |
}} | }} | ||
− | + | <poem> | |
कोठा है प्राचीन काठ के संदूक में जीवित | कोठा है प्राचीन काठ के संदूक में जीवित | ||
− | |||
मानो पेड़ की देह में हरी रस भरी साँस लेता | मानो पेड़ की देह में हरी रस भरी साँस लेता | ||
− | |||
उससे टिकाकर पीठ पर बैठी एक लड़की | उससे टिकाकर पीठ पर बैठी एक लड़की | ||
− | |||
पुरानी साड़ी की तहों में डूबती कि | पुरानी साड़ी की तहों में डूबती कि | ||
− | |||
अबंधी साड़ी में ख़ुद को दादी की जगह निहारती | अबंधी साड़ी में ख़ुद को दादी की जगह निहारती | ||
− | |||
− | |||
कनस्तर में रखे गर्म आटे की सुंगध | कनस्तर में रखे गर्म आटे की सुंगध | ||
− | |||
कच्चे गेहूँ की बालियों को चूमता किसान | कच्चे गेहूँ की बालियों को चूमता किसान | ||
− | |||
एक कसे हुए जिस्म में हँसता अधेड़ | एक कसे हुए जिस्म में हँसता अधेड़ | ||
− | |||
कि पढ़ा जाता उसने तूतनखानम के कद्दावर अर्दली का क़िस्सा | कि पढ़ा जाता उसने तूतनखानम के कद्दावर अर्दली का क़िस्सा | ||
− | |||
− | |||
एक डेढ़ेक साल का बच्चा मचलता पेड़ से लटकते झूले पर | एक डेढ़ेक साल का बच्चा मचलता पेड़ से लटकते झूले पर | ||
− | |||
कि तगाड़ी उठाती माँ के स्तनों से झरा दूध अभी | कि तगाड़ी उठाती माँ के स्तनों से झरा दूध अभी | ||
− | |||
थोड़े नजीक में एक और तैयार होता लड़का | थोड़े नजीक में एक और तैयार होता लड़का | ||
− | |||
ताँगे में घोड़े की रास थामे पुकारता अब्बू को | ताँगे में घोड़े की रास थामे पुकारता अब्बू को | ||
− | |||
− | |||
कितनी तहों के नीचे अंधेरों में डूबी रोशनी | कितनी तहों के नीचे अंधेरों में डूबी रोशनी | ||
− | |||
रोज़ की टूट-फूट में बचा कितना कुछ | रोज़ की टूट-फूट में बचा कितना कुछ | ||
− | |||
ध्वंस के मुहाने पर कमाल कितना | ध्वंस के मुहाने पर कमाल कितना | ||
− | |||
एक परिंदा फूल-सी हँसी लिए डोल रहा | एक परिंदा फूल-सी हँसी लिए डोल रहा | ||
+ | </poem> |
02:57, 16 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
कोठा है प्राचीन काठ के संदूक में जीवित
मानो पेड़ की देह में हरी रस भरी साँस लेता
उससे टिकाकर पीठ पर बैठी एक लड़की
पुरानी साड़ी की तहों में डूबती कि
अबंधी साड़ी में ख़ुद को दादी की जगह निहारती
कनस्तर में रखे गर्म आटे की सुंगध
कच्चे गेहूँ की बालियों को चूमता किसान
एक कसे हुए जिस्म में हँसता अधेड़
कि पढ़ा जाता उसने तूतनखानम के कद्दावर अर्दली का क़िस्सा
एक डेढ़ेक साल का बच्चा मचलता पेड़ से लटकते झूले पर
कि तगाड़ी उठाती माँ के स्तनों से झरा दूध अभी
थोड़े नजीक में एक और तैयार होता लड़का
ताँगे में घोड़े की रास थामे पुकारता अब्बू को
कितनी तहों के नीचे अंधेरों में डूबी रोशनी
रोज़ की टूट-फूट में बचा कितना कुछ
ध्वंस के मुहाने पर कमाल कितना
एक परिंदा फूल-सी हँसी लिए डोल रहा