भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"त्रयेक / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत | |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत | ||
− | |संग्रह= घर एक यात्रा / श्रीनिवास श्रीकांत | + | |संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत |
}} | }} | ||
<poem> | <poem> |
00:05, 18 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
त्रयेक
लोहार चला रहा
लगातार अपनी धोंकनी
कुम्भकार दे रहा
मिट्टी को आकर
बुनकर बुन रहा
ब्रह्मासूत
जाने त्रयेक परमेश्वरों ने
क्यों रची होगी
यह रूखी, अड़िय़ल
और नापायेदार
अदभुत माया
इसे जानते हैं तो जानते फकत
साधू आखरों के सबदकार
कि पेड़ लगातार झड़ रहे हैं
फिर भी उनसे आ रही है
खंजड़ी और मंजीरों की धुन
बेमौसम क्यों अँकुराते हैं
जंगली अंजीरों केपेड़
बना रही हैं क्यों शहद और मोम
गुनगुन भजन गातीं मधुमक्खियाँ
बज रहा सबके अन्दर क्यों
एक नाद
फिर भी आदमी है
लोहार का
बजता हुआ धोकी यंत्र
कुम्हार की मृद् घड़त
और जुलाहे की चादर
वह है अनादि अनन्त का
एक नायाब तोहफा
जिसे चला रहे
लोहार
कुम्हार
और बुनकर।