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बरसों लम्बी संकरी सुरंग में
टटोलते हुए एक-एक क़दम
हम दे रहे हैं कितना इम्तेहान
फ़िलहाल सरक रहे हैं हम
सुई की नोक जितनी
रोशनी की तरफ़