भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हास्य-रस -सात / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} Category:ग़ज़ल <poem> * क्योंकर ख़ुदा ...) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
* | * | ||
− | क्योंकर ख़ुदा के अर्श के क़ायल हों | + | क्योंकर ख़ुदा के अर्श के क़ायल हों ये अज़ीज़ |
जुगराफ़िये में अर्श का नक़्शा नहीं मिला | जुगराफ़िये में अर्श का नक़्शा नहीं मिला | ||
12:27, 18 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
क्योंकर ख़ुदा के अर्श के क़ायल हों ये अज़ीज़
जुगराफ़िये में अर्श का नक़्शा नहीं मिला
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
जान ही लेने की हिकमत में तरक़्क़ी देखी
मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुआ
तालीम का शोर ऐसा, तहज़ीब का ग़ुल इतना
बरकत जो नहीं होती नीयत की ख़राबी है
तुम बीवियों को मेम बनाते हो आजकल
क्या ग़म जो हम ने मेम को बीवी बना लिया?
नौकरों पर जो गुज़रती है, मुझे मालूम है
बस करम कीजे मुझे बेकार रहने दीजिये