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"पवाड़ा / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=तुलसी रमण
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|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
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|एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
 
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01:17, 19 जनवरी 2009 का अवतरण

बहुत डर लगता है मित्र
पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
ढलानो से लुढ़कती चली जाती है
आँखें बंद कर लेता हूं
जब कोई देवदार
औंधे मुंह गिरता है
राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है
स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
अनगिनत शव
और वाचक उसी मुस्कान के साथ
पढ़ता है दुर्घटना के समाचार

सहम जाता हूँ
मेरा भाई जब
जुदा रहने की बात करता है
बूढ़ी माँ मर जाने को कहती है
और पत्नि करती है प्रार्थना
संभल कर जाने और
यहाँ तक कि बेटा भी
कैंसर होने से आगाह करता है
बीड़ी न पीने को कहता है
बस अड्डे के बोर्ड पर
लिखा है रहता है
एडस का कोई ईलाज नहीं
ग्रहण न करें बिना जाँच
किसी का ख़ून
सुनो मित्र!
तुम बताओ
इतनी चेतावनिओं के बीच जीना
क्या आसान है?