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"पवाड़ा / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=मोहन साहिल
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|रचनाकार=तुलसी रमण
|एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
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|ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
 
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बहुत डर लगता है मित्र
 
पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
 
ढलानो से लुढ़कती चली जाती है
 
आँखें बंद कर लेता हूं
 
जब कोई देवदार
 
औंधे मुंह गिरता है
 
राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है
 
स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
 
अनगिनत शव
 
और वाचक  उसी मुस्कान के साथ
 
पढ़ता है दुर्घटना के समाचार
 
 
सहम जाता हूँ
 
मेरा भाई जब
 
जुदा रहने की बात करता है
 
बूढ़ी माँ मर जाने को कहती है
 
और पत्नि करती है प्रार्थना
 
संभल कर जाने और 
 
यहाँ तक कि बेटा भी
 
कैंसर होने से आगाह करता है
 
बीड़ी न पीने को कहता है
 
बस अड्डे के बोर्ड पर
 
लिखा है रहता है
 
एडस का कोई ईलाज नहीं
 
ग्रहण न करें बिना जाँच
 
किसी का ख़ून
 
सुनो मित्र!
 
तुम बताओ
 
इतनी चेतावनिओं के बीच जीना
 
क्या आसान है?
 
 
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01:22, 19 जनवरी 2009 का अवतरण