भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आदमी हूँ / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
जाने कब से मुट्ठियों में | जाने कब से मुट्ठियों में | ||
− | + | बाँधना चाहता हूँ सुख | |
जो भिंचने से पहले ही | जो भिंचने से पहले ही | ||
हाथ से नदारद हो जाता है | हाथ से नदारद हो जाता है | ||
बहुत की है यात्रा मैंने | बहुत की है यात्रा मैंने | ||
− | ठहरा | + | ठहरा हूँ कई वर्ष एक जगह |
बहाए हैं कितने ही आँसू | बहाए हैं कितने ही आँसू | ||
संजोए कितने अहसास | संजोए कितने अहसास | ||
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ | मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ | ||
− | जलने या | + | जलने या दफ़न होने का भय है |
घावों की वेदना | घावों की वेदना | ||
फूलों के खिलने का सुख है | फूलों के खिलने का सुख है |
07:39, 19 जनवरी 2009 का अवतरण
जाने कब से मुट्ठियों में
बाँधना चाहता हूँ सुख
जो भिंचने से पहले ही
हाथ से नदारद हो जाता है
बहुत की है यात्रा मैंने
ठहरा हूँ कई वर्ष एक जगह
बहाए हैं कितने ही आँसू
संजोए कितने अहसास
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ
जलने या दफ़न होने का भय है
घावों की वेदना
फूलों के खिलने का सुख है
आंधियों से पेड़ उखड़ने का दुख
आसमानी बौछार की ठंडक है
और जलती धरती से तलवों में जलन
रात के अंधेरे से उकताया हूँ
सूरज की चमक से भौंचक्का
मैं आदमी हूँ
थोड़े से प्रेम से विह्वल
उपेक्षा से दोगुना पीड़ित।