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"चुपचाप / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर
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नदी के प्रवाह को मानता था बहा नहीं | नदी के प्रवाह को मानता था बहा नहीं | ||
एक टुकड़ा उपजाऊ धरती रोके रही मुझे | एक टुकड़ा उपजाऊ धरती रोके रही मुझे | ||
− | चाहता नहीं था मैं सूरज सा दहकना | + | चाहता नहीं था मैं सूरज-सा दहकना |
अपने में भस्म हो जाना | अपने में भस्म हो जाना | ||
जुगन बनना आवश्यकता थी | जुगन बनना आवश्यकता थी | ||
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बुलंदियों का शौक नहीं | बुलंदियों का शौक नहीं | ||
नहीं चाहता विजय मगर, | नहीं चाहता विजय मगर, | ||
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और गिनने हैं बिना धुएँ के चूल्हे | और गिनने हैं बिना धुएँ के चूल्हे | ||
− | ये | + | ये चीख़ अनजाने निकल गई मुझसे |
− | बावजूद रक्त सने पाँवों के | + | बावजूद रक्त-सने पाँवों के |
मैं तय करना चाहता था चुपचाप | मैं तय करना चाहता था चुपचाप | ||
पूरा का पूरा पठार। | पूरा का पूरा पठार। | ||
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07:46, 19 जनवरी 2009 का अवतरण
कौन मैली करना चाहता था
बर्फ़ की साफ़-सफ़ेद चादर
मगर मुझे लगा जीवन आवश्यक
प्रकृति के सुंदर दृश्यों से
नदी के प्रवाह को मानता था बहा नहीं
एक टुकड़ा उपजाऊ धरती रोके रही मुझे
चाहता नहीं था मैं सूरज-सा दहकना
अपने में भस्म हो जाना
जुगन बनना आवश्यकता थी
वरना इस अंधेरे में कुचला जाता
इस पहाड़ में कोई संजीवनी नहीं
बुलंदियों का शौक नहीं
नहीं चाहता विजय मगर,
देखनी है मुझे यहाँ से बस्तियाँ
और गिनने हैं बिना धुएँ के चूल्हे
ये चीख़ अनजाने निकल गई मुझसे
बावजूद रक्त-सने पाँवों के
मैं तय करना चाहता था चुपचाप
पूरा का पूरा पठार।