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00:56, 20 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
नए नामों में, भूकम्प एक और नाम है इस शहर का (ब्याह के
बाद बिटिया का नाम कोई और है)। इसी ओर भाग रहे हैं शान्त
शहर के लोग।
वे भाग नहीं रहे हैं। वे मन में घिरे हुए घरों की बल्लियाँ उठाएँगे,
द्वारों के पल्ले उठाएँगे और हड्डियों के साथ सो जाएँगे।
बच्चे गर्दन से दीमक छुड़ाते हुए भाग रहे हैं। लाल कलगीदार
उनके स्वप्न में बाँग देते हुए भाग रहे हैं।
शान्त शहर के कवि मिरासिनों का हाथ थामे धीमे-धीमे चल
रहे हैं। चाँद उनके साथ नहीं है। पत्तों से छनते हुए तारे उनके साथ
नहीं हैं।
भूकम्प बहुत दूर है, वे निश्चिन्त हैं। चाँद उनका साथ नहीं दे
रहा, कि तारे उनके साथ नहीं चल रहे, वे निश्चिन्त हैं।
वह भूमि उनके पाँव तले नहीं है जो अभी तक काँप रही है।
जो कभी भी काँप सकती है
उनके पाँव तले नहीं है।