भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झिलमिल / त्रिनेत्र जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिनेत्र जोशी |संग्रह=}} <poem> निपट अँधेरे में चार...)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:44, 23 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

निपट अँधेरे में
चारों ओर
गिरती-पड़ती हैं हवाएँ
और पगडंडियाँ

संगीत के स्वरों में
छप-छप बजती हैं साँसें
स्वर से स्वर तक
धमक-गमक रहे हैं सुरों के पाँव
चारों ओर शीतल चाँदनी का मद्धिम विस्तार
अभेद छिटकी है
झरने रास्तों पर जाते हैं चलकर
नीलेपन तक भीतर ही भीतर
एक लय / रवाँ होती है
दूधिया भी हो सकता है समाजवाद
धरती पर तारों की तरह छिटके हैं-
अभाव और अपमान
और सिकुड़ कर सिसकतीं गुर्बत की बस्तियाँ
बहलाता-थपथपाता सरक रहा है संगीत
अन्न के कुछ दानों की तरह
टिमटिमाती हैं अनुगूँजें
सुर से सुर तक
झिलमिलाती है एक मरीचिका