Changes

दिक्काल से परे / अनूप सेठी

42 bytes added, 19:23, 22 जनवरी 2009
उड़ गए सारे मुर्गे
शहर भर की रसोइयों को खाली कर गए
पंख फड़फड़ाते हुए दो दो फुट की छलांगें छलाँगें लगाई होंगी
दहशत छोड़ गए शहरियों के वास्ते
उसी वक्त जब शहर में मुर्गा फरार कांड काँड हुआ
मैरीन ड्राइव के आखिरी पत्थर की नोक पर खड़े
पंजों के बल एक अधेड़ ने अरब की खाड़ी में छलांग छलाँग लगाई
लेटा रहा पीठ के बल खाड़ी की छाती पर
नॉर्थ ब्लॉक सकते में आ गया
गलाफाड़ भजनों के बीच
सबने पढ़ीं अखबारें
'''2.'''
नींद की गोलियाँ खाकर जब सो गया शहर
कसाईबाड़े की मरगिल्ली बकरियां बकरियाँ बूढ़ी गैय्यां
बीमार बैल घूरे के सूअर सब उठ खड़े हुए
मुंड्डियां मुड्धैस्ड्डियाँ धड़ से जुदा थीं
चीर कर उधेड़ कर खालें जूता कंपनियों का
मुनाफा कमाने ले जाई जा चुकी थीं
चल पड़ा माँस मज्जा हड्डियों का खड़खड़ाता जुलूस
ग्लोगल विलेज पर तांडव ताँडव करता
गलकटी कुकड़ियाँ कुदकने लगीं जुलूस के आगे
जल बिन फुदकती मछलियों ने बना दिए पुल
महाद्वीपों के ऊपर
जहां जहां जहाँ-जहाँ टपका लहू समुद्र बना जमा हुआ
धरती के कूबड़ में माँस के लोथड़े थे
हड्डियों से चिने गए पर्वत शिखर
मरी हुई साँस ठुंस ठुँस गई आकाश में
शहरियों ने जब इस तरह खाई सारी कायनात
उदर में शूल उठे, मरोड़ पड़े, अतिसार लगे
फिर बनाई गईं खाई गईं दवाएंदवाएँनींद की गोलियां गोलियाँ अनगिनत}
 
 
3.
 
अरब की खाड़ी में थूथन छिपाए
अंधेरे में लोग लोगों को एसिडिटी
कूबड़ के नीचे जर्द आंखें आँखें
आँखों में रेत रेत में ईश्वर के मरे हुए जर्रे
अरब की खाड़ी है पसरी हुई ठेकेदारनी
छपाके मार मार धोती है
जर्रों भरी मुंदी मुँदी हुई आंखें  (1994)आँखें।
(1994)
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits