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  '''रचनाकार:''' [[केदारनाथ अग्रवाल]]
 
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:जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है  
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जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है  
:तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है  
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तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है  
:जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
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जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
:जो रवि के रथ का घोड़ा है
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जो रवि के रथ का घोड़ा है
:वह जन मारे नहीं मरेगा
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वह जन मारे नहीं मरेगा
:नहीं मरेगा
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नहीं मरेगा
 
   
 
   
:जो जीवन की आग जला कर आग बना है
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जो जीवन की आग जला कर आग बना है
:फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
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फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
:जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
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जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
:जो युग के रथ का घोड़ा है
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जो युग के रथ का घोड़ा है
:वह जन मारे नहीं मरेगा
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वह जन मारे नहीं मरेगा
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04:46, 24 जनवरी 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
  रचनाकार: केदारनाथ अग्रवाल

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है 
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है 
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
 
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा