भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बरामदे / रुस्तम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |संग्रह= }} <Poem> आपकी दुकानों के आगे खुले बर...)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:05, 28 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

आपकी
दुकानों के आगे
खुले बरामदों में
बीतती हैं हमारी
ठिठुरती रातें

दिन भर
आपका बोझा ढोते हैं
रात को आप ही के
बरामदों में सोते हैं

आप मालिक हैं जनाब !
हम आपके नौकर हैं !
दुनिया आपकी है !
हम भी आपके !