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"पहाड़-3 / दीनू कश्यप" के अवतरणों में अंतर
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अब रात-बेरात
काले अर्धचन्द्र-सा
खड़ा रहता है वह
उसकी गोद में
टिमटिमाता है
कुछ--
बचे हुए पेड़
मायूसी में कहते हैं
यह आग नहीं
बंधुआ रोशनी है
वरना
पहाड़ काला ना होता।