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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक:''' जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है <br>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक:''' शासन की बन्दूक <br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[केदारनाथ अग्रवाल]]
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[नागार्जुन]]
 
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जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
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खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
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नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
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जो रवि के रथ का घोड़ा है
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उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक
वह जन मारे नहीं मरेगा
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जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक
नहीं मरेगा
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बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
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धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
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जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
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सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
जो युग के रथ का घोड़ा है
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जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक
वह जन मारे नहीं मरेगा
+
 
नहीं मरेगा
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जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक
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बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक
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01:55, 30 जनवरी 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: शासन की बन्दूक
  रचनाकार: नागार्जुन

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक 
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक 

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक 
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक 

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक 

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक 
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक 

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक