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01:55, 30 जनवरी 2009 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक: शासन की बन्दूक
रचनाकार: नागार्जुन
खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक