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मिले सहसा
देवीलाल पाटीदार
दिल्ली की एक भव्य कला-दीर्घा में
वे जैसे कला-दीर्घा में नहीं थे
वे भोपाल में भी नहीं थे
शायद रहे हों अपनी पैतृक भूमि में
देवीलाल पाटीदार
दिल्ली में जान पड़े इतने सहज
जैसे दिल्ली के समूचे आतंक को,
पिछली दहाइयों के ख्यातनाम किस्साग़ो
ज्ञानरंजन के शब्दों में,
रखते हों अपने अमुक प्रदेश पर
दिल्ली में होते हुए मैं
देवीलाल पाटीदार से जैसे
झाबुआ में बातचीत कर रहा था
मैंने किया दरयाफ़्त देवीलाल पाटीदार से
उनके शिल्पों के बारे में
वे बोले आओ चलते हैं
एक-एक प्याला चाय तो पी ही जा
सकती है।
सन्दर्भ :
देवीलाल पाटदार : भारत के एक बेहद सम्वेदनशील चित्रकार