भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तब्दीली / ब्रज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रज श्रीवास्तव |संग्रह= }} <Poem> पर्दे के गिरने और ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:39, 2 फ़रवरी 2009 का अवतरण
पर्दे के गिरने
और फिर उठने के बाद भी
नहीं दिखाई दिया
जाना-पहचाना सा कुछ भी
जो सुनना चाहता हू~म
नहीं कहा जाता अब
जो देखना चाहता हू~म
नहीं दिखाई देता
तब्दीली गुज़र रही है इधर से
अवसान और प्रस्थान के बीच
निर्मित हो रही है एक रेखा।