भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ / छगनलाल सोनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छगनलाल सोनी |संग्रह= }} <Poem> माँ तुम्हें पढ़कर तुम...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:45, 4 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
माँ
तुम्हें पढ़कर
तुम्हारी उँगली की धर कलम
गढ़ना चाहता हूँ
तुम सी ही कोई कृति
तुम्हारे हृदय के विराट विस्तार में
पसरकर सोचता हूँ मैं
और खो जाता हूँ कल्पना लोक में
फिर भी सम्भव नहीं तुम्हें रचना
शब्दों का आकाश
छोटा पड़ जाता है हर बार
तुम्हारी माप से
माँ
तुम धरती हो।