भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हँसी / हैरॉल्ड पिंटर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
छो |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
ये झरती है और किकयाती है और रिसती है दिमाग़ में | ये झरती है और किकयाती है और रिसती है दिमाग़ में | ||
ये झरती है और किकयाती है लाशों के दिमाग़ों में | ये झरती है और किकयाती है लाशों के दिमाग़ों में | ||
− | और | + | और ऐसे सारे झूठ हँसते हुए किए जाते हैं फ़राहम |
जिन्हें सोख लेती है सिर कटी लाशों की हँसी बेदम | जिन्हें सोख लेती है सिर कटी लाशों की हँसी बेदम | ||
जिन्हें सोख लेते हैं हँसती लाशों के मुँह हर कदम | जिन्हें सोख लेते हैं हँसती लाशों के मुँह हर कदम |
05:43, 6 फ़रवरी 2009 का अवतरण
हँसी थम जाती है पर कभी नहीं होती खत्म
हँसी झुठाने में लगा देती है अपना पूरा दम
हँसी हँसती है उस पर जो है अनकहा हर दम
ये झरती है और किकयाती है और रिसती है दिमाग़ में
ये झरती है और किकयाती है लाशों के दिमाग़ों में
और ऐसे सारे झूठ हँसते हुए किए जाते हैं फ़राहम
जिन्हें सोख लेती है सिर कटी लाशों की हँसी बेदम
जिन्हें सोख लेते हैं हँसती लाशों के मुँह हर कदम
मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल एकलव्य