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"फूलों का गुच्छा / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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08:33, 7 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
फूलों का एक गुच्छा है उसके हाथ में और वह
बढ़ रही है बाग की तरफ़
बन्द है बाग कि अचानक फूलों के गुच्छे
चाबियों में बदल गए
वह बाग को खोल रही है
वह हवा की तरह प्रवेश कर रही है बाग में
बाग में मच गई है हलचल
उसके स्वागत में हिलने लगी हैं शाखें
रास्ते में बिछने लगे हैं फूल
गूँजने लगे हैं कलरव
आश्चर्य से भर गई हैं सभी चीज़ें
ऎसा आश्चर्य तब होता है जब वह आती है
खनकती हुई बाग में अपूर्व उल्लास के साथ
एक साथ बजने लगते हैं हज़ारों घूंघरू
सम्पन्न हो रहा हो जैसे कोई नृत्य-उत्सव
फूलों के कई रंगों में लहकने लगता है उपवन