भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितने धार्मिक / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=संसार की धूप / प्र...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:कविता]]
 
[[Category:कविता]]
<poem>कितनी धार्मिक होती है बंदूक़
+
<poem>
जिसने छूटकर धर्म
+
कितनी धार्मिक होती है बंदूक़
 +
जिससे छूटकर धर्म
 
बेक़सूर आदमी में  
 
बेक़सूर आदमी में  
 
दनादन उतर जाता है  
 
दनादन उतर जाता है  
पंक्ति 31: पंक्ति 32:
 
ठीक विपरीत खुलते हैं  
 
ठीक विपरीत खुलते हैं  
 
प्रत्यक्ष जो अंदर हैं
 
प्रत्यक्ष जो अंदर हैं
 
 
 
</poem>
 
</poem>

21:52, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

कितनी धार्मिक होती है बंदूक़
जिससे छूटकर धर्म
बेक़सूर आदमी में
दनादन उतर जाता है

कितनी धार्मिक होती हैं इच्छाएँ
कि आदमी आदमीपन से मुकर जाता है
और लगातार चील की तरह् मंडराता है

कितनी धार्मिक होती है भूख
जो केवल लाशें निगलती हैं


कितनी धार्मिक होती है प्यास
जो केवल खून पीती है

कितनी धार्मिक प्रतिक्रिया
लाश के बदले लाश
खून के बदले खून

कितने धार्मिक होते हैं धर्म ग्रंथ
समय की गवाही में
को केवल शब्दाडंबर हैं
आदमी के दिमाग़ में जब भी खुलते हैं शब्दार्थ
ठीक विपरीत खुलते हैं
प्रत्यक्ष जो अंदर हैं