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वारिस शाह से / अमृता प्रीतम

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पंजाब की एक बेटी रोई थी
तूने एक लंबी दस्तांन दास्तान लिखी
आज लाखों बेटियां रो रही हैं,
हर चरखे का धागा छूट गया
सहेलियां एक दूसरे से छूट गयींगईं
चरखों की महफिल विरान वीरान हो गयीगई
मल्लाहों ने सारी कश्तियां
जहां प्यार के नगमे गूंजते थे
वह बांसुरी जाने कहां खो गयीगई
और रांझे के सब भाई
धरती पर लहू बरसा
कबरें क़ब्रें टपकने लगीं
और प्रीत की शहजादियां
मजारों में रोने लगीं
आज सब कैदों कैदी बन गये
हुस्न इश्क के चोर
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