भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बूमरैंग / रघुवंश मणि" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवंश मणि }} <poem> एक भीड़ है धुएँ जैसी छा जाती है ब...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:03, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
एक भीड़ है
धुएँ जैसी छा जाती है
बादलों की तरह दृश्य ढँकती
समुद्र तटों पर
साइक्लोन की तरह
वह निकालती है
कुछ घुड़सवार
उन्हें तलवार पकड़ाती है
माथे पर तिलक लगाकर
भेजती है बादलों के पार
बहुत ख़ुश है सहस्त्राक्षी भीड़
अपने नायकों को देखकर
जाते हैं वे उस पार
शत्रुओं से छीन लाएंगे
भविष्य के स्वप्निल यथार्थ
सुनहले
हर बार यही होता है
शहर अपने नायकों को
खो देता है धूप में
ओस के वाष्पन की तरह
लोग आकाश निहारते-निहारते
लौट आते हैं वापस
अपने घरों को निराश
दीवार पर टँगी भूलों को
खाली निगाहों से तकते
आशाओं के घुड़सवार
विरोधियों की ओर से
आते हैं शहर की ओर
ख़बरों की तरह
लोग घरों से निकलते हैं
आश्चर्य से भयाक्रान्त