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उम्र बढ़ती जा रही है माँ की मेरी | उम्र बढ़ती जा रही है माँ की मेरी | ||
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अब वह सवेरे देर से उठने लगी है | अब वह सवेरे देर से उठने लगी है | ||
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ताज़े अख़बारों की सरसराहट में भी | ताज़े अख़बारों की सरसराहट में भी | ||
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राहत उसे पहले से कम मिलने लगी है | राहत उसे पहले से कम मिलने लगी है | ||
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हवा का हर घूँट उसे अब कड़वा लगता है | हवा का हर घूँट उसे अब कड़वा लगता है | ||
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बर्फ़-सा सख़्त फ़र्श उसे अब चिकना लगता है | बर्फ़-सा सख़्त फ़र्श उसे अब चिकना लगता है | ||
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यहाँ तक कि कन्धे पर पड़ा हल्का शाल भी | यहाँ तक कि कन्धे पर पड़ा हल्का शाल भी | ||
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उसे अब भारी लगे, ज्यों शरीर में चुभता है | उसे अब भारी लगे, ज्यों शरीर में चुभता है | ||
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जब माँ घूमती है बाहर, सड़क पर या गली में | जब माँ घूमती है बाहर, सड़क पर या गली में | ||
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हिमपात होता है इतना धीमा, सावधानी ही भली है | हिमपात होता है इतना धीमा, सावधानी ही भली है | ||
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वर्षा जैसे चाटती है जूते उसके, किसी सनेही कुत्ते की तरह | वर्षा जैसे चाटती है जूते उसके, किसी सनेही कुत्ते की तरह | ||
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हवा बहती है हौले से कि खड़ी रहे माँ कुकुरमुत्ते की तरह | हवा बहती है हौले से कि खड़ी रहे माँ कुकुरमुत्ते की तरह | ||
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इस महाकठिन, कष्टमय, मुसीबत भरे दौर में | इस महाकठिन, कष्टमय, मुसीबत भरे दौर में | ||
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वह सब कुछ करती रही आसानी के ठौर में | वह सब कुछ करती रही आसानी के ठौर में | ||
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और मैं डरता रहा बहुत कि कहीं कोई उसे | और मैं डरता रहा बहुत कि कहीं कोई उसे | ||
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पंख की तरह उड़ा न ले जाए इस रूस से | पंख की तरह उड़ा न ले जाए इस रूस से | ||
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माँ के शेष बचे कुछ धुंधले चिन्हों के साथ | माँ के शेष बचे कुछ धुंधले चिन्हों के साथ | ||
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मैं भला तब कैसे जीवित रहूंगा, नाथ! | मैं भला तब कैसे जीवित रहूंगा, नाथ! | ||
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माँ है वो मेरी, आत्मा है, मेरी है प्रिया | माँ है वो मेरी, आत्मा है, मेरी है प्रिया | ||
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उसके ही साए में मैं आज तक जिया | उसके ही साए में मैं आज तक जिया | ||
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01:31, 17 फ़रवरी 2009 का अवतरण
उम्र बढ़ती जा रही है माँ की मेरी
अब वह सवेरे देर से उठने लगी है
ताज़े अख़बारों की सरसराहट में भी
राहत उसे पहले से कम मिलने लगी है
हवा का हर घूँट उसे अब कड़वा लगता है
बर्फ़-सा सख़्त फ़र्श उसे अब चिकना लगता है
यहाँ तक कि कन्धे पर पड़ा हल्का शाल भी
उसे अब भारी लगे, ज्यों शरीर में चुभता है
जब माँ घूमती है बाहर, सड़क पर या गली में
हिमपात होता है इतना धीमा, सावधानी ही भली है
वर्षा जैसे चाटती है जूते उसके, किसी सनेही कुत्ते की तरह
हवा बहती है हौले से कि खड़ी रहे माँ कुकुरमुत्ते की तरह
इस महाकठिन, कष्टमय, मुसीबत भरे दौर में
वह सब कुछ करती रही आसानी के ठौर में
और मैं डरता रहा बहुत कि कहीं कोई उसे
पंख की तरह उड़ा न ले जाए इस रूस से
माँ के शेष बचे कुछ धुंधले चिन्हों के साथ
मैं भला तब कैसे जीवित रहूंगा, नाथ!
माँ है वो मेरी, आत्मा है, मेरी है प्रिया
उसके ही साए में मैं आज तक जिया