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"रात की मकड़ी / सौरीन्द्र बारिक" के अवतरणों में अंतर
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रात की मकड़ी | रात की मकड़ी | ||
पहले बुनती है अन्धकार का जाल | पहले बुनती है अन्धकार का जाल | ||
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− | कई निरीह | + | कई निरीह तारिकाएँ |
तड़पती हैं, | तड़पती हैं, | ||
तड़पती रहती हैं। | तड़पती रहती हैं। | ||
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किन्तु मेरे मन की मकड़ी | किन्तु मेरे मन की मकड़ी | ||
बुन रही है हताशा का जाल | बुन रही है हताशा का जाल | ||
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कोई कोमल स्वप्न व्यथा के | कोई कोमल स्वप्न व्यथा के | ||
वेदना के। | वेदना के। | ||
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21:05, 17 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
रात की मकड़ी
पहले बुनती है अन्धकार का जाल
फिर उस जाले में फँस जाती है
कई निरीह तारिकाएँ
तड़पती हैं,
तड़पती रहती हैं।
किन्तु मेरे मन की मकड़ी
बुन रही है हताशा का जाल
और उसमें फँस जाते हैं
कोई कोमल स्वप्न व्यथा के
वेदना के।