भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आगमन वसन्त का / येव्गेनी येव्तुशेंको" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
भर लाया हो | भर लाया हो | ||
दो कम्पित सूरज जैसे | दो कम्पित सूरज जैसे | ||
+ | |||
+ | |||
+ | '''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय | ||
</poem> | </poem> |
20:49, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण
धूप खिली थी
और रिमझिम वर्षा
छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार
सूर्य ने फैला रखी थीं बाहें अपनी
वह जीवन को आलिंगन में भर
कर रहा था प्यार
नव-अरुण की
ऊष्मा से
हिम सब पिघल गया था
जमा हुआ
जीवन सारा तब
जल में बदल गया था
वसन्त कहार बन
बहंगी लेकर
हिलता-डुलता आया ऎसे
दो बाल्टियों में
भर लाया हो
दो कम्पित सूरज जैसे
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय