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"पत्नी / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
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(नया पृष्ठ: तू मेरे घर में बहनेवाली एक नदी मैं नाव जिसे रहना हर दिन बाहर के रेग...) |
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तू मेरे घर में बहनेवाली एक नदी | तू मेरे घर में बहनेवाली एक नदी | ||
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मैं नाव | मैं नाव | ||
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जिसे रहना हर दिन | जिसे रहना हर दिन | ||
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बाहर के रेगिस्तानों में। | बाहर के रेगिस्तानों में। | ||
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नन्हीं बेसुध लहरों को तू | नन्हीं बेसुध लहरों को तू | ||
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अपने आँचल में पाल रही | अपने आँचल में पाल रही | ||
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उनको तट तक लाने को ही | उनको तट तक लाने को ही | ||
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तू अपना नीर उछाल रही | तू अपना नीर उछाल रही | ||
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तू हर मौसम को सहनेवाली एक नदी | तू हर मौसम को सहनेवाली एक नदी | ||
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मैं एक देह | मैं एक देह | ||
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जो खड़ी रही आँधी, वर्षा, तूफ़ानों में। | जो खड़ी रही आँधी, वर्षा, तूफ़ानों में। | ||
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इन गर्म दिनों के मौसम में | इन गर्म दिनों के मौसम में | ||
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कितनी कृश कितनी क्षीण हुई। | कितनी कृश कितनी क्षीण हुई। | ||
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उजली कपास-सा चेहरा भी | उजली कपास-सा चेहरा भी | ||
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हो गया कि जैसे जली रुई | हो गया कि जैसे जली रुई | ||
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तू धूप-आग में रहनेवाली एक नदी | तू धूप-आग में रहनेवाली एक नदी | ||
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मैं काठ | मैं काठ | ||
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सूखना है जिसको | सूखना है जिसको | ||
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इन धूल भरे दालानों में। | इन धूल भरे दालानों में। | ||
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तेरी लहरों पर बहने को ही | तेरी लहरों पर बहने को ही | ||
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मुझे बनाया कर्मिक ने | मुझे बनाया कर्मिक ने | ||
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पर तेरे-मेरे बीच रेख- | पर तेरे-मेरे बीच रेख- | ||
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खींची रोटी की, मालिक ने | खींची रोटी की, मालिक ने | ||
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तू चंद्र-बिंदु के गहनेवाली एक नदी | तू चंद्र-बिंदु के गहनेवाली एक नदी | ||
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मैं सम्मोहन | मैं सम्मोहन | ||
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जो टूट गया | जो टूट गया | ||
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बिखरा फिर नई थकानों में। | बिखरा फिर नई थकानों में। |
17:52, 19 फ़रवरी 2009 का अवतरण
तू मेरे घर में बहनेवाली एक नदी
मैं नाव
जिसे रहना हर दिन
बाहर के रेगिस्तानों में।
नन्हीं बेसुध लहरों को तू
अपने आँचल में पाल रही
उनको तट तक लाने को ही
तू अपना नीर उछाल रही
तू हर मौसम को सहनेवाली एक नदी
मैं एक देह
जो खड़ी रही आँधी, वर्षा, तूफ़ानों में।
इन गर्म दिनों के मौसम में
कितनी कृश कितनी क्षीण हुई।
उजली कपास-सा चेहरा भी
हो गया कि जैसे जली रुई
तू धूप-आग में रहनेवाली एक नदी
मैं काठ
सूखना है जिसको
इन धूल भरे दालानों में।
तेरी लहरों पर बहने को ही
मुझे बनाया कर्मिक ने
पर तेरे-मेरे बीच रेख-
खींची रोटी की, मालिक ने
तू चंद्र-बिंदु के गहनेवाली एक नदी
मैं सम्मोहन
जो टूट गया
बिखरा फिर नई थकानों में।