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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

झनकारो झनकारो झनकारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो - २
तुम हो बृज की सुन्दर गोरी, मैं मथुरा को मतवारो
चुंदरि चादर सभी रंगे हैं, फागुन ऐसे रखवारो।
गौरी प्यारो…
सब सखिया मिल खेल रहे हैं, दिलवर को दिल है न्यारो
गौरी प्यारो…
अब के फागुन अर्ज करत हूँ, दिल कर दे मतवारो
गौरी प्यारो…
भृज मण्डल सब धूम मची है, खेलत सखिया सब मारो
लपटी झपटी वो बैंया मरोरे, मारे मोहन पिचकारी
गौरी प्यारो…
घूंघट खोल गुलाल मलत है, बंज करे वो बंजारो
गौरी प्यारो लगो तेरो झनकारो -२