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"उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

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याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है<br>
 
याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है<br>
रात को रो-रो सुबह किया, दिन को ज्यों-त्यों शाम किया<br><br>
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'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो<br>
 
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो<br>
 
क़श्क़ा खींचा, दैर में बैठा, कब का तर्क इस्लाम किया
 
क़श्क़ा खींचा, दैर में बैठा, कब का तर्क इस्लाम किया

03:31, 27 फ़रवरी 2009 का अवतरण

उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

अह्द-ए-जवानी रो-रो काटा, पीरी में लीं आँखें मूँद
यानि रात् बहोत थे जागे सुबह हुई आराम किया

नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस बदनाम किया

सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया

ऐसे आहो-एहरम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सिहर किया, इजाज़ किया, जिन लोगों ने तुझ को राम किया

याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया

'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा, दैर में बैठा, कब का तर्क इस्लाम किया