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− | १.
| + | == रैदास की रचनाएँ == |
− | ।। राग रामकली।।
| + | [[Category:रैदास]] |
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− | == Headline text == | + | |
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− | परचै रांम रमै जै कोइ।
| + | ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* |
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− | पारस परसें दुबिध न होइ।। टेक।।
| + | *[[परचै राम रमै जै कोइ / रैदास]] |
− | | + | *[[अब मैं हार्यौ रे भाई / रैदास]] |
− | जो दीसै सो सकल बिनास, अण दीठै नांही बिसवास।
| + | *[[गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ / रैदास]] |
− | | + | *[[राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ / रैदास]] |
− | बरन रहित कहै जे रांम, सो भगता केवल निहकांम।।१।।
| + | *[[अब मोरी बूड़ी रे भाई / रैदास]] |
− | | + | *[[तेरा जन काहे कौं बोलै / रैदास]] |
− | फल कारनि फलै बनराइं, उपजै फल तब पुहप बिलाइ।
| + | *[[भाई रे भ्रम भगति सुजांनि / रैदास]] |
− | | + | *[[त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे / रैदास]] |
− | ग्यांनहि कारनि क्रम कराई, उपज्यौ ग्यानं तब क्रम नसाइ।।२।।
| + | *[[आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां / रैदास]] |
− | | + | *[[भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो / रैदास]] |
− | बटक बीज जैसा आकार, पसर्यौ तीनि लोक बिस्तार।
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− | जहाँ का उपज्या तहाँ समाइ, सहज सुन्य में रह्यौ लुकाइ।।३।।
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− | जो मन ब्यदै सोई ब्यंद, अमावस मैं ज्यू दीसै चंद।
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− | जल मैं जैसैं तूबां तिरै, परचे प्यंड जीवै नहीं मरै।।४।।
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− | जो मन कौंण ज मन कूँ खाइ, बिन द्वारै त्रीलोक समाइ।
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− | मन की महिमां सब कोइ कहै, पंडित सो जे अनभै रहे।।५।।
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− | कहै रैदास यहु परम बैराग, रांम नांम किन जपऊ सभाग।
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− | ध्रित कारनि दधि मथै सयांन, जीवन मुकति सदा निब्रांन।।६।।
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− | २.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | अब मैं हार्यौ रे भाई। | + | |
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− | थकित भयौ सब हाल चाल थैं, लोग न बेद बड़ाई।। टेक।।
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− | थकित भयौ गाइण अरु नाचण, थाकी सेवा पूजा।
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− | काम क्रोध थैं देह थकित भई, कहूँ कहाँ लूँ दूजा।।१।।
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− | रांम जन होउ न भगत कहाँऊँ, चरन पखालूँ न देवा।
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− | जोई-जोई करौ उलटि मोहि बाधै, ताथैं निकटि न भेवा।।२।।
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− | पहली ग्यांन का कीया चांदिणां, पीछैं दीया बुझाई।
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− | सुनि सहज मैं दोऊ त्यागे, राम कहूँ न खुदाई।।३।।
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− | दूरि बसै षट क्रम सकल अरु, दूरिब कीन्हे सेऊ।
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− | ग्यान ध्यानं दोऊ दूरि कीन्हे, दूरिब छाड़े तेऊ।।४।।
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− | पंचू थकित भये जहाँ-तहाँ, जहाँ-तहाँ थिति पाई।
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− | जा करनि मैं दौर्यौ फिरतौ, सो अब घट मैं पाई।।५।।
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− | पंचू मेरी सखी सहेली, तिनि निधि दई दिखाई।
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− | अब मन फूलि भयौ जग महियां, उलटि आप मैं समाई।।६।।
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− | चलत चलत मेरौ निज मन थाक्यौ, अब मोपैं चल्यौ न जाई।
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− | सांई सहजि मिल्यौ सोई सनमुख, कहै रैदास बताई।।७।।
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− | ३.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | गाइ गाइ अब का कहि गांऊँ। | + | |
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− | गांवणहारा कौ निकटि बतांऊँ।। टेक।।
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− | जब लग है या तन की आसा, तब लग करै पुकारा।
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− | जब मन मिट्यौ आसा नहीं की, तब को गाँवणहारा।।१।।
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− | जब लग नदी न संमदि समावै, तब लग बढ़ै अहंकारा।
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− | जब मन मिल्यौ रांम सागर सूँ, तब यहु मिटी पुकारा।।२।।
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− | जब लग भगति मुकति की आसा, परम तत सुणि गावै।
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− | जहाँ जहाँ आस धरत है यहु मन, तहाँ तहाँ कछू न पावै।।३।।
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− | छाड़ै आस निरास परंमपद, तब सुख सति करि होई।
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− | कहै रैदास जासूँ और कहत हैं, परम तत अब सोई।।४।।
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− | ४.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ, सेवा करौं न दासा। | + | |
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− | गुनी जोग जग्य कछू न जांनूं, ताथैं रहूँ उदासा।। टेक।।
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− | भगत हूँ वाँ तौ चढ़ै बड़ाई। जोग करौं जग मांनैं।
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− | गुणी हूँ वांथैं गुणीं जन कहैं, गुणी आप कूँ जांनैं।।१।।
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− | ना मैं ममिता मोह न महियाँ, ए सब जांहि बिलाई।
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− | दोजग भिस्त दोऊ समि करि जांनूँ, दहु वां थैं तरक है भाई।।२।।
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− | मै तैं ममिता देखि सकल जग, मैं तैं मूल गँवाई।
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− | जब मन ममिता एक एक मन, तब हीं एक है भाई।।३।।
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− | कृश्न करीम रांम हरि राधौ, जब लग एक एक नहीं पेख्या।
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− | बेद कतेब कुरांन पुरांननि, सहजि एक नहीं देख्या।।४।।
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− | जोई जोई करि पूजिये, सोई सोई काची, सहजि भाव सति होई।
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− | कहै रैदास मैं ताही कूँ पूजौं, जाकै गाँव न ठाँव न नांम नहीं कोई।।५।।
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− | ५.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | अब मोरी बूड़ी रे भाई। | + | |
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− | ता थैं चढ़ी लोग बड़ाई।। टेक।।
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− | अति अहंकार ऊर मां, सत रज तामैं रह्यौ उरझाई।
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− | करम बलि बसि पर्यौ कछू न सूझै, स्वांमी नांऊं भुलाई।।१।।
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− | हम मांनूं गुनी जोग सुनि जुगता, हम महा पुरिष रे भाई।
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− | हम मांनूं सूर सकल बिधि त्यागी, ममिता नहीं मिटाई।।२।।
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− | मांनूं अखिल सुनि मन सोध्यौ, सब चेतनि सुधि पाई।
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− | ग्यांन ध्यांन सब हीं हंम जांन्यूं, बूझै कौंन सूं जाई।।३।।
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− | हम मांनूं प्रेम प्रेम रस जांन्यूं, नौ बिधि भगति कराई।
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− | स्वांग देखि सब ही जग लटक्यौ, फिरि आपन पौर बधाई।।४।।
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− | स्वांग पहरि हम साच न जांन्यूं, लोकनि इहै भरमाई।
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− | स्यंघ रूप देखी पहराई, बोली तब सुधि पाई।।५।।
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− | ऐसी भगति हमारी संतौ, प्रभुता इहै बड़ाई।
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− | आपन अनिन और नहीं मांनत, ताथैं मूल गँवाई।।६।।
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− | भणैं रैदास उदास ताही थैं, इब कछू मोपैं करी न जाई।
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− | आपौ खोयां भगति होत है, तब रहै अंतरि उरझाई।।७।।
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− | ६.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | तेरा जन काहे कौं बोलै। | + | |
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− | बोलि बोलि अपनीं भगति क्यों खोलै।। टेक।।
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− | बोल बोलतां बढ़ै बियाधि, बोल अबोलैं जाई।
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− | बोलै बोल अबोल कौं पकरैं, बोल बोलै कूँ खाई।।१।। | + | |
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− | बोलै बोल मांनि परि बोलैं, बोलै बेद बड़ाई।
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− | उर में धरि धरि जब ही बोलै, तब हीं मूल गँवाई।।२।।
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− | बोलि बोलि औरहि समझावै, तब लग समझि नहीं रे भाई।
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− | बोलि बोलि समझि जब बूझी, तब काल सहित सब खाई।।३।।
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− | बोलै गुर अरु बोलै चेला, बोल्या बोल की परमिति जाई।
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− | कहै रैदास थकित भयौ जब, तब हीं परंमनिधि पाई।।४।।
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− | ७.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | भाई रे भ्रम भगति सुजांनि। | + | |
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− | जौ लूँ नहीं साच सूँ पहिचानि।। टेक।।
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− | भ्रम नाचण भ्रम गाइण, भ्रम जप तप दांन।
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− | भ्रम सेवा भ्रम पूजा, भ्रम सूँ पहिचांनि।।१।।
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− | भ्रम षट क्रम सकल सहिता, भ्रम गृह बन जांनि।
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− | भ्रम करि करम कीये, भरम की यहु बांनि।।२।।
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− | भ्रम इंद्री निग्रह कीयां, भ्रंम गुफा में बास।
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− | भ्रम तौ लौं जांणियै, सुनि की करै आस।।३।।
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− | भ्रम सुध सरीर जौ लौं, भ्रम नांउ बिनांउं।
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− | भ्रम भणि रैदास तौ लौं, जो लौं चाहे ठांउं।।४।।
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− | ८.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे, अंतरि ल्यौ लागी। | + | |
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− | एक अनूपम अनभई, किम होइ बिभागी।। टेक।।
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− | इक अभिमानी चातृगा, विचरत जग मांहीं।
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− | जदपि जल पूरण मही, कहूं वाँ रुचि नांहीं।।१।।
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− | जैसे कांमीं देखे कांमिनीं, हिरदै सूल उपाई।
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− | कोटि बैद बिधि उचरैं, वाकी बिथा न जाई।।२।।
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− | जो जिहि चाहे सो मिलै, आरत्य गत होई।
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− | कहै रैदास यहु गोपि नहीं, जानैं सब कोई।।३।।
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− | ९.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां। | + | |
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− | जांनि क्रिया कीजै अपनों जनां।। टेक।।
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− | त्रिबिधि जोनी बास, जम की अगम त्रास, तुम्हारे भजन बिन, भ्रमत फिर्यौ।
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− | ममिता अहं विषै मदि मातौ, इहि सुखि कबहूँ न दूभर तिर्यौं।।१।।
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− | तुम्हारे नांइ बेसास, छाड़ी है आंन की आस, संसारी धरम मेरौ मन न धीजै।
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− | रैदास दास की सेवा मांनि हो देवाधिदेवा, पतितपांवन, नांउ प्रकट कीजै।।२।। | + | |
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− | १०.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो। | + | |
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− | सति रांम ताकै निकटि न आवो।। टेक।।
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− | राम कहत जगत भुलाना, सो यहु रांम न होई।
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− | करंम अकरंम करुणांमै केसौ, करता नांउं सु कोई।।१।।
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− | जा रामहि सब जग जानैं, भ्रमि भूले रे भाई।
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− | आप आप थैं कोई न जांणै, कहै कौंन सू जाई।।२।।
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− | सति तन लोभ परसि जीय तन मन, गुण परस नहीं जाई।
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− | अखिल नांउं जाकौ ठौर न कतहूँ, क्यूं न कहै समझाई।।३।।
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− | भयौ रैदास उदास ताही थैं, करता को है भाई।
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− | केवल करता एक सही करि, सति रांम तिहि ठांई।।४।।
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− | ११.
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− | ।। राग रामकली।।
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− | ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै।
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− | साहिब मेरौ मिलै तौ को बिगरावै।। टेक।।
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− | सब मैं हरि हैं हरि मैं सब हैं, हरि आपनपौ जिनि जांनां।
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− | अपनी आप साखि नहीं दूसर, जांननहार समांनां।।१।।
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− | बाजीगर सूँ रहनि रही जै, बाजी का भरम इब जांनं।
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− | बाजी झूठ साच बाजीगर, जानां मन पतियानां।।२।।
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− | मन थिर होइ तौ कांइ न सूझै, जांनैं जांनन हारा।
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− | कहै रैदास बिमल बसेक सुख, सहज सरूप संभारा।।३।।
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