"भ्रष्टाचार / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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09:27, 6 मार्च 2009 का अवतरण
हमारे लाख मना करने पर भी
हमारे घर के चक्कर काटता हुआ
मिल गया भ्रष्टाचार
हमने डांटा : नहीं मानोगे यार
तो बोला : चलिए
आपने हमें यार तो कहा
अब्ब आगे का काम
हम सम्भाल लेंगे
आप हमको पाल लीजिए
आपके बाल-बच्चो को
हम पाल लेंगे
हमने कहा : भ्रष्टाचार जी!
किसी नेत या अफ़सर के
बच्चो को पालना
और बात है
इन्सान के बच्चो को पालना
आसान नहीं है
वो बोला : जो वक्त के साथ नहीं चलता
इंसान नहीं है
मैं आज का वक्त हूँ
कल्युग की धमनियों में
बहता हुआ रक्त हूँ
कहने को काला हूँ
मगर मेरे कई रेंज हैं
दहेज़, बेरोज़्गारी
हड़ताल और दंगे
मेरे ही बीस सूत्री कार्यक्रम के अंग हैं
मेरे ही इशारे पर
रात में हुस्न नाचता है
और दिन में
पंडित रामायण बांचता है
मैं जिसके साथ हूँ
वह हर कानून तोड़ सकता है
अदलत की कुर्सी का चेहरा
चाहे जिस ओर मोड़ सकता है
उसके आंगन में
अंगड़ाई लेती है
गुलाबी रात
और दरवाज़े पर दस्तक देती है
सुनहरी भोर
उसके हाथ में चान्दी का जूता है
जिसके सर पर पड़ता है
वही चिल्लाता है
वंस मोर
वंस मोर
वंस मोर
इसलिए कहता हूँ
कि मेरे साथ हो लो
और बहती गंगा में हाथ धो लो