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"कवि फ़रोश / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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01:59, 9 मार्च 2009 का अवतरण

जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ
मैं तरह-तरह के कवि बेचता हूँ
मैं किसम-किसम के कवि बेचता हूँ।
जी, वेट देखिए, रेट बताऊं मैं
पैदा होने की डेट बताऊं मैं
जी, नाम बुरा, उपनाम बताऊं मैं
जी, चाहे तो बदनाम बताऊं मैं
जी, इसको पाया मैंने दिल्ली में
जी, उसको पकड़ा त्रिचनापल्ली में
जी, कलकत्ते में इसको घेरा है
जी, वह बंबइया अभी बछेरा है
जी, इसे फंसाया मैंने पूने में
जी, तन्हाई में, उसको सूने में
ये बिना कहे कविता सुनवाता है
जी, उसे सुनो, तो चाय पिलाता है
जो, लोग रह गए धँधे में कच्चे
जी, उन लोगों ने बेच दिए बच्चे
जी, हुए बिचारे कुछ ऐसे भयभीत
जी, बेच दिए घबरा के अपने गीत।
मैं सोच समझ कर कवि बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
ये लाल किले का हिरो कहलाता
ये दढ़ी दिखला कर बहलाता
जी, हास्य व्यंग की वो गौरव गरिमा
जी गाया करता जीजा की महिमा
जी, वह कुर्तक का रंग जमाता है
जी, बिना अर्थ के अर्थ कमाता है
वो गला फाड़ कर काम चला लेता
ये पैर पटक कर धाक जमा लेता
जी, ये त्यागी है, वैरागी है वो,
जी, ये विद्रोही है, अनुरागी है वो
ये कवि युद्ध की गाता है लोरी
वो लोक धुनों की करता है चोरी
ये सेनापति कवियों की सेना का
वो किस्सा गाता तौता-मैना का
ये अभी-अभी आया है लाइट में
वो कसर नहीं रखता है डाइट में
ये लिखना लेता है कविता हथिनी पर
वो लिखना लेता है अपनी पत्नी पर
जी, इसने बिल्ली गधे नहीं छोड़े
जी, उसने कुत्ते बंधे नहीं छोड़े
जी, सस्ते दामों इन्हें बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
जी, भीतर से स्पेशल बुलवाऊँ
आप कहे उनको भी दिखलाऊँ
ये अभी-अभी लौटा है लंदन से
वो अभी-अभी उतरा है चंदन से
इसने कविता पर पुरस्कार जीता
है शासन तक लम्बा इसका फीता
जी, गम खाता वो आँसू पीता है
जी, ये फोकट की रम ही पीता है
इसके पोरखो ने पी इतनी हाला
बिन पिए रची है इसने मधुशाला
जी, ये मन में कस्तूरी बोता है
जी, वो कवियों के बिस्तर ढ़ोता है