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हमें उत्तराधिकार में नहीं चाहिए पुस्तकें
 
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कोई झपटेगा पास बुक पर
 
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कोई ढूंढ़ेंगा लाकर की चाभी
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किसी की आँखों में चमकेंगे खेत
 
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किसी के गड़े हुए सिक्के
 
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हाय हाय, समय
 
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बूढ़ी दादी सी उदास हो जाएंगी
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बूढ़ी दादी सी उदास हो जाएँगी
 
पुस्तकें
 
पुस्तकें
  

06:09, 11 मार्च 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: पुस्तकें
  रचनाकार: विश्वनाथप्रसाद तिवारी

नही, इस कमरे में नहीं
उधर
उस सीढ़ी के नीचे
उस गैरेज के कोने में ले जाओ
पुस्तकें
वहाँ, जहाँ नहीं अट सकती फ्रिज
जहाँ नहीं लग सकता आदमकद शीशा

बोरी में बांध कर 
चट्टी से ढँक कर
कुछ तख्ते के नीचे
कुछ फूटे गमले के ऊपर
रख दो पुस्तकें

ले जाओ इन्हें तक्षशिला- विक्रमशिला
या चाहे जहाँ
हमें उत्तराधिकार में नहीं चाहिए पुस्तकें
कोई झपटेगा पास बुक पर
कोई ढूंढ़ेंगा लाकर की चाबी 
किसी की आँखों में चमकेंगे खेत
किसी के गड़े हुए सिक्के
हाय हाय, समय
बूढ़ी दादी सी उदास हो जाएँगी 
पुस्तकें

पुस्तकों!
जहाँ भी रख दें वे
पड़ी रहना इंतजार में

आयेगा कोई न कोई
दिग्भ्रमित बालक जरूर
किसी शताब्दी में
अंधेरे में टटोलता अपनी राह

स्पर्श से पहचान लेना उसे
आहिस्ते-आहिस्ते खोलना अपना हृदय
जिसमें सोया है अनन्त समय
और थका हुआ सत्य
दबा हुआ गुस्सा
और गूंगा प्यार
दुश्मनों के जासूस
पकड़ नहीं सके जिसे!