भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बस्ती की औरत / देवांशु पाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंशु मालवीय }} <poem> बस्ती की औरत से मत पूछो कि, उसकी...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अंशु मालवीय
+
|रचनाकार=देवांशु पाल
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>

21:36, 12 मार्च 2009 के समय का अवतरण

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

बस्ती की औरत से
मत पूछो
कि, उसकी आँखों के नीचे
चमकती बून्दे
पसीने की हैं या आँसू

बस्ती की औरत से
मत पूछो
उसके होंठों की चुप्पियाँ
उसकी मजबूरी है या इच्छा

बस्ती की औरत से
मत पूछो
उसके कोख में
पलता बच्चा
उसकी इच्छा की है या नहीं

बस्ती की औरत से
मत पूछो
वह जिन्दगी काट रही है
या खुद ब खुद जिन्दगी
कट रही है

वह तुम्हे कुछ भी नहीं बताएगी

बस्ती की औरत
बरसों से ऐसे ही
जीती आ रही है