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"अपनी पहचान / नंद भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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इस सनातन सृष्टि की
उत्पत्ति से ही जुड़ा है मेरा रक्त-सम्बन्ध
अपने आदिम रूप से मुझ तक आती
असंख्य पीढ़ियों का पानी
दौड़ रहा है मेरे ही आकार में

पृथ्वी की अतल गहराइयों में
संचित लावे की तरह
मुझमें सुरक्षित है पुरखों की ऊर्जा
उसी में साधना है मुझे अपना राग

मेरे ही तो सहोदर हैं
ये दरख़्त ये वनस्पतियाँ
मेरी आँखों में तैरते हरियाली के बिम्ब
अनगिनत रंगों में खिलते फूलों के मौसम
अरबों प्रजातियाँ जीवधारियों की
खोजती हैं मुझमें अपने होने की पहचान।