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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''फुटपाथ बिछौने हैं <br>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''रोटी और संसद <br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[ब्रजमोहन]]  
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[धूमिल]]  
 
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अपने नीचे सड़कों के फुटपाथ बिछौने हैं
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एक आदमी
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रोटी बेलता है
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एक आदमी रोटी खाता है
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एक तीसरा आदमी भी है
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जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
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वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
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मैं पूछता हूं--
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'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
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मेरे देश की संसद मौन है।
  
कोई खिलौना मांग न बेटे! हम ही खिलौने हैं
 
  
 
कच्चे-पक्के, टूटे-फूटे
 
मन-सा घर का सपना
 
सपनों की दुनिया में ही तो
 
जीता है सुख अपना
 
 
उजड़े हुए चमन में ही तो सपने बोने हैं
 
 
 
दुख के झूले पर जीवन की
 
लम्बी पींग बढ़ाना
 
पत्ता-पत्ता नींद से जागे
 
ऎसे पेड़ हिलाना
 
 
हार न जाना, छाँव-फूल-फल अपने होने हैं
 
 
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00:47, 26 मार्च 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: रोटी और संसद
  रचनाकार: धूमिल

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।