भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क़ामयाबी / महेन्द्र गगन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र गगन |संग्रह= }} <Poem> 'हम होंगे क़ामयाब एक द...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:50, 26 मार्च 2009 के समय का अवतरण
'हम होंगे क़ामयाब एक दिन’
यह ’एक दिन’
आशा के आकाश में टंगा
वह छलावा है
जिससे ठगे जा रहे हैं हम
हर बार, हर दिन
क़ामयाब उछालते हैं
यह नारा
और हमें
दिखलाते हैं सब्ज़बाग़
कामयाब होने का किसी दिन
क़ामयाबी भविष्य में नहीं
इसी वक़्त है
और है, इसी दिन