भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शामुका के लिए एक कविता / प्रभात त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात त्रिपाठी |संग्रह= }} <Poem> नवजात की नींद में ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:04, 30 मार्च 2009 के समय का अवतरण


नवजात की नींद में लरजते सपनों की ओर
ले चलो
ले चलो उसकी बेआवाज़ खिलखिल के
नन्हें अधरों से लिपटते विस्मय में
वहीं मिलेगी कामना की नर्म धूप में नहाती
वह गुमशुदा साँवरी

उसी कोमल किसलय के बाजू से
पूजा के दिए की लौ की उजास में
तुम फिर से देख पाओगे
अपनी बूढ़ी आँखों में काँपती सुबह
यक़ीन के इस आदिम अनाकार में
आज की बर्बर रफ़्तार के बावजूद
तुम बार-बार लौटोगे स्मृति की गलियों में

और जब अकस्मात् दौड़ते लहू की पुकार पर
दौड़ोगे अपने खेल के मैदान में
तो पथराते अंगों की अचलता में
अवतरित होगी वही गुमशुदा साँवरी

दौड़ेगी तुम्हारे साथ
अपने हाथ में तुम्हारा हाथ लिए
दौड़ेगी और दौड़ाएगी तुम्हें
इहलोक के घमासान से
उस लोक के सुनसान तक